भारत में तलाक के बाद पति-पत्नी के संपत्ति अधिकार हमेशा से विवाद का विषय रहे हैं। अलग होने पर दोनों की आर्थिक स्थिति, बच्चों का भरण-पोषण और महिला की सुरक्षा को लेकर कई बार अदालत तक मामला जाता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है।
आम तौर पर, तलाक के बाद महिला को पति की संपत्ति का क्या और कितना हिस्सा मिलेगा, ये सवाल हर मामले में अलग-अलग परिस्थितियों पर निर्भर करता रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अब इन सवालों का एक साफ कानूनी आधार दिया है, जिससे महिलाओं को अपने अधिकार समझने में आसानी होगी और समाज में भी एक सकारात्मक संदेश गया है।
Supreme Court Judgement: Property Rights for Divorced Women
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में खासतौर पर तलाकशुदा महिलाओं के लिए भरण-पोषण (maintenance) और स्थाई गुजारा भत्ता (permanent alimony) संबंधी अधिकारों को लेकर मार्गदर्शन दिया है। कोर्ट ने साफ किया है कि तलाक के बाद, अगर पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की है, तो उसे पूर्व पति की संपत्ति से स्थाई मासिक गुजारा भत्ता (permanent alimony) पाने का अधिकार होगा।
फैसले के मुताबिक, अब पति को तलाकशुदा पत्नी को 50,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देना होगा, जो पहले दिए जा रहे 20,000 रुपये से ढाई गुना अधिक है। इतना ही नहीं, हर साल उस भत्ते में 5% की सालाना बढ़ोतरी भी की जाएगी, जिससे महंगाई और जरूरी जरूरतों को ध्यान में रखा जा सके। यह फैसला इस सोच के साथ दिया गया है ताकि महिलाएं तलाक के बाद आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करें और न्यूनतम जीवन स्तर में भी दिक्कत न आए।
पति की प्रॉपर्टी में सीधे हक का प्रावधान नहीं
यह एक आम गलतफहमी है कि तलाक के बाद पत्नी को पति की संपत्ति में सीधा हिस्सा मिल जाता है। असल में, भारत में प्रॉपर्टी (जायजाद) का बंटवारा विवाह कानूनों जैसे Hindu Marriage Act, 1955 और Special Marriage Act, 1954 के तहत होता है। सुप्रीम कोर्ट का जोर इस बात पर रहा है कि पत्नी को पति की संपत्ति में तभी हिस्सा मिले, जब वह संयुक्त स्वामित्व (joint ownership) में हो, या जब पत्नी संपत्ति की खरीद में अपने योगदान को साबित कर सके।
स्व-अर्जित या विरासत में मिली संपत्ति जो पूरी तरह पति के नाम दर्ज है, उस पर तलाक के बावजूद पत्नी का कोई कानूनी दावा नहीं बनता। हां, अगर कोई संपत्ति पति और पत्नी के संयुक्त नाम पर है और दोनों ने खरीद में योगदान दिया है, तो ऐसे में अदालत योगदान और आवश्यकता के हिसाब से बंटवारा तय कर सकती है। अगर पत्नी ने वित्तीय या गैर-वित्तीय (गृहिणी के रूप में योगदान) रूप से संपत्ति के निर्माण में हिस्सेदारी निभाई है, तो भी अदालत इसे ध्यान में रखती है।
कोर्ट द्वारा दी गई राहत : गुजारा भत्ता और स्थायी भत्ता
सुप्रीम कोर्ट का मुख्य फोकस जीवन-यापन और महिला की आर्थिक सुरक्षा पर रहा है। कोर्ट ने साफ किया है कि पत्नी को पति के वेतन, संपत्ति और कुल आय को देखकर भरण-पोषण या स्थायी गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। यही वजह है कि 50,000 रुपये मासिक भत्ता और 5% सालाना वृद्धि का आदेश दिया गया, ताकि जीवनयापन मुश्किल न हो और महिला की गरिमा बनी रहे।
फैसले का लाभ उन्हीं महिलाओं को मिलेगा,
- जो तलाक के बाद पुनः विवाह नहीं करती हैं।
- जिनके पास खुद की पर्याप्त आय या संपत्ति नहीं है।
- जो पति के नाम की संपत्ति में कानूनी हक नहीं रखतीं, फिर भी आर्थिक रूप से आश्रित हैं।
अगर पति संपत्ति बेच देता है या आय छुपाता है, तो कोर्ट अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकती है और भत्ते को संपत्ति की बिक्री/आय से जोड़ सकती है। यदि पत्नी को, अदालत की नजर में, घर से बेदखल किया गया, तो उसे निवास का भी अधिकार मिलेगा जब तक विभाजन निष्पक्ष न हो जाए।
सरकार, कानून और सामाजिक संदेश
महिला अधिकारों की सुरक्षा के लिए अदालत का यह फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है। सरकार की तरफ से भी महिला सशक्तिकरण के लिए अलग से कई योजनाएं और कानून मौजूद हैं, पर अदालत के इस कदम से महिलाओं की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को और बल मिलेगा।
यह कोई अलग सरकारी योजना नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का कानूनी फैसला है, जो पूरे देश भर के पारिवारिक अदालतों में लागू होता है। कानूनी व्यवस्था में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि तलाकशुदा पत्नी को ‘भरण-पोषण’ का हक स्वयं कानून और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मिलता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने तलाकशुदा महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा और सामाजिक सम्मान प्रदान किया है। अब तलाक के बाद भी महिला को पति से उचित गुजारा भत्ता पाने का कानूनी अधिकार मिला है, जिससे वह आत्मनिर्भर और सुरक्षित रह सकेगी। इस निर्णय से देश में महिला अधिकारों को लेकर दृढ़ सन्देश गया है और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।